Saturday 3 August 2013

ताल-पाल नहरें-लहरें

पहाड़ियों के
रूप रस गंध
पीता हुआ
सराबोर करता हुआ
सम्पूर्ण बनराय को
सिमट-सिमट आता है
जलाशय में
सुदूर तक फैला हुआ
नीलमणि

मानसरोवर ताल
जिसको थामती है
धूल-धूसरित पाल

यहाँ -वहां सूख रहे
हरे -पीले लूगड़े
उन छबीली स्त्रियों के है
जो नहा रही है
घाट पर

तैर रही है नावें
चल रही है नहरें
उठ रही है लहरें

No comments:

Post a Comment