संवलाई रात गई
आगया प्रभात
आसमान मुस्काया
किरन ही किरन
धूप में नहायेंगे हिरन
थक गए अकेले में
चलो चलें मेले में
कुछ न कुछ खरीदेंगे
टके और धेले में
चरखी झूलों की
देखेंगे फिरन
धूप में नहायेंगे ...
आहट अकुलाहट है
जिन्दगी के गाँव में
चलते चलते छाले
पड़ गए हाई पाँव में
दरिया में देखेंगे
नाव की तिरन
धूप में नहायेंगे ....
बचपन तो बचपन
लंगड़ी सितोलिया
गलियों चौबारों की
धूल ने समोलिया
गाँव में बुलाते है
बाखर आँगन
धूप में नहायेंगे हिरन
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