Saturday 3 August 2013

धूप में नहायेंगे


संवलाई रात गई
आगया प्रभात

आसमान मुस्काया
किरन ही किरन
धूप में नहायेंगे हिरन

थक गए अकेले में
चलो चलें मेले में
कुछ न कुछ खरीदेंगे
टके और धेले में

चरखी झूलों की
देखेंगे फिरन
धूप में नहायेंगे ...

आहट अकुलाहट है
जिन्दगी के गाँव में
चलते चलते छाले
पड़ गए हाई पाँव में

दरिया में देखेंगे
नाव की तिरन
धूप में नहायेंगे ....

बचपन तो बचपन
लंगड़ी सितोलिया
गलियों चौबारों की
धूल ने समोलिया

गाँव में बुलाते है
बाखर आँगन
धूप में नहायेंगे हिरन

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