जी
हाँ
यहाँ
से सीधी
जाती
है गली
ठेठ
ऊपर
भैरों
बाबा के थान तक
यह
गली
सुबराती
के माकन से
धोबियों
कुम्हारों को
बाँटती
हुई
गली
की काट पर
चौधरी
कि हथाई है
थोडा
चले आगे
सक्के
और नाई हैं
ढह
गई है
खाती
की खतवार
कुछ
भी कहाँ बचा है
बह
गई है
वक्त
के थपेड़े सहती हुई
लुहार
कि लौह्सार
कहाँ
रह गई है अब
गवांरियों
की
कन्घियाँ
बनाती
करोतियों
कि धार
कितना
दबंग था
बाबा
सेठ कलार
अब
न हाल बनता है
न
फाल
न
जूडी न तलौटी
दांते
पयास कुडी
खुणीता
पिरानी
संग्रहालय
की वस्तुए है
कौन
जाने कहाँ चली गई
बैलगाडियां
और
बैलजोड़ियां
यहीं
से होता रास्ता
जाता
है स्टेशन
सड़क
जाती है शहर को
कभी
चला जाऊंगा मैं भी
यहीं
से होता हुआ