गुलनार
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जैसे कोलाहल में
सुनाई दिया हो
मंद मंद सितार
भादवे के मेघ की
गिरती हो फुहार
जैसे मालकांगनी ने
किया हो श्रंगार
लावण्य मयी धरती में
हुई हो झंकार
हे गुलनार
तुम मरूधर में
बहती हुई जल धार
तुम रसवन्ती हो
वासन्ती हो
अंजुरी में सद्यस्नात
मोगरे के फूल
निस्सीम सागर में
फहरता मस्तूल
हे गुलनार
तुम सौन्दर्य का विस्तार
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जैसे कोलाहल में
सुनाई दिया हो
मंद मंद सितार
भादवे के मेघ की
गिरती हो फुहार
जैसे मालकांगनी ने
किया हो श्रंगार
लावण्य मयी धरती में
हुई हो झंकार
हे गुलनार
तुम मरूधर में
बहती हुई जल धार
तुम रसवन्ती हो
वासन्ती हो
अंजुरी में सद्यस्नात
मोगरे के फूल
निस्सीम सागर में
फहरता मस्तूल
हे गुलनार
तुम सौन्दर्य का विस्तार
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