Saturday 3 August 2013

पता है तुम्हें

पता है तुम्हे
नीम की मंजरिया
झुलस कार गिर रही है
रोज़ - ब -रोज़
गंधियाता है गलियारा

पता है तुम्हे
सेमर सुर्ख हुए
बिखर गए
अमलतास पर
झूल रही है
काली कट्ट फलियाँ
पलाश की प्रौढ़ हुइ है
रतनार कलियाँ
अमवारी में
बौर झड़ गए
पड़ोसी की नीमड़ी पर
काग ने
बनाया है घोसला
पता है तुम्हे
इस बरस
सरसराहट नहीं हुई
टिटहरियों
गिलहरियों
चिड़ियों,गौरेयाओ के बीच

नहीं सुनाई पड़ी
कोकिल कंठी तान
कहीं बिला गइ वह
पल्लवी मुस्कान

देव मार्तंड
सुखाये दे रहा है
धरती पर बचा हुआ
थोड़ा बहुत पानी
करील कचनार की
मिट रही कहानी

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