Sunday 4 August 2013

यहीं से होता हुआ



जी हाँ
यहाँ से सीधी
जाती है गली
ठेठ ऊपर
भैरों बाबा के थान तक

यह गली
सुबराती के माकन से
धोबियों कुम्हारों को
बाँटती हुई

गली की काट पर
चौधरी कि हथाई है
थोडा चले आगे
सक्के और नाई हैं

ढह गई है
खाती की खतवार
कुछ भी कहाँ बचा है
बह गई है
वक्त के थपेड़े सहती हुई
लुहार कि लौह्सार

कहाँ रह गई है अब
गवांरियों की
कन्घियाँ बनाती
करोतियों कि धार

कितना दबंग था
बाबा सेठ कलार

अब न हाल बनता है
न फाल
न जूडी न तलौटी  

दांते पयास कुडी
खुणीता पिरानी
संग्रहालय की वस्तुए है

कौन जाने कहाँ चली गई
बैलगाडियां
और बैलजोड़ियां

यहीं से होता रास्ता
जाता है स्टेशन
सड़क जाती है शहर को
कभी चला जाऊंगा मैं भी
यहीं से होता हुआ

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